ऐ गायबी ख़ुदा मेरे अब नजरें कर्म करना
बेताब निगाहों को अब खुश ओ खुरम करना
तेरे नूर के जलवों को हैं तरसती मेरी आँखें
अब पर्दा हटा देना पूरे दिल के अरमां करना
क्या कहते अश्क मेरे रूख़सारों पे ठहरे हैं
रख मश्केज़ा में इनको न दर से जुदा करना
दरिया की तरह बहते आँखों से जुदा आंसू
ख़ामोश जुबां बैठे रहमत से फजल करना
हो जलवा गर तेरा चेहरा मसीकन गुलाम ऊपर
आँखों में समा जाए तेरी सूरत कर्म करना